वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
अर्थ: हे भगवन, देवताओं ने जब भी आपको पुकारा है, तुरंत आपने उनके दुखों का निवारण किया। तारक जैसे राक्षस के उत्पात से परेशान देवताओं ने जब आपकी शरण ली, आपकी गुहार लगाई।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
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जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
पाठ करे सो पावन हारी ॥ पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप Shiv chaisa पठायउ ।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥